चाँद से मुराद थी के हौसला वो दे,
इस काली घनी रात में रोशनी तो दे।
जिस चाँद को पूजा अब तक
उस चाँद ने साथ छोडा है
महज दुआ नही कर्म है जिंदगी
दुआ मे जीने के अन्धविश्वास को तोड़ा है
पैसा ही सब कुछ नही
पैसा ही सब कुछ नही , पर पैसा ही सब कुछ है
जिसमें उलझे हैं उन सभी समस्याओं का वो भी एक हल है
सर पे हाथ हो रब का तो बरकत कहलाती है
पर इस संसार में बरकत पैसा कहलाती है
गुरूर हो हज़ार का तो लाखों से टूट जाता है
इस पैसे के लिये इन्सान रिश्तो को तोड जाता है
ज़रूरत से लेकर खुमार भी है, जीवन का आज ये सार भी है
इज्जत से लेकर पहचान भी है , पर अब तो पैसे से इन्सान की शान भी है
जो कोड़ी हो जेब में , तो कोड़ियो सा बर्ताव मिलता है
जो लाखों हो तो , नवाबो सा ठाट मिलता है
वो रोटीयो की ज़रूरत भी पैसे से पूरी होती है
पर भुखमरी की नौबत भी तो पैसे से ही होती है ।
पैसा सब कुछ नही पर पैसा ही सब है ।
आकर्ष गोयल
आकर्ष मुज़फ्फरनगर में रहते हैं । अभिनय, नृत्य और लेखन की तरफ इनका रुझान है। अभी, वे एस.डी कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज से बी.बी.ए कर रहे हैं और उसी कोर्स के द्वितीय वर्ष में हैं ।
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